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आ नो॑ य॒ज्ञं भार॑ती॒ तूय॑मे॒त्विडा॑ मनु॒ष्वदि॒ह चे॒तय॑न्ती। ति॒स्रो दे॒वीर्ब॒र्हिरेद स्यो॒नꣳ सर॑स्वती॒ स्वप॑सः सदन्तु ॥३३ ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

आ। नः॒। य॒ज्ञम्। भार॑ती॒। तूय॑म्। ए॒तु॒। इडा॑। म॒नु॒ष्वत्। इ॒ह। चे॒तय॑न्ती। ति॒स्रः। दे॒वीः। ब॒र्हिः। आ। इ॒दम्। स्यो॒नम्। सर॑स्वती। स्वप॑स॒ इति॑ सु॒ऽअप॑सः। स॒द॒न्तु॒ ॥३३।

यजुर्वेद » अध्याय:29» मन्त्र:33


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हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे मनुष्यो ! जो (भारती) शिल्पविद्या को धारण करनेहारी क्रिया (इडा) सुन्दर शिक्षित मीठी वाणी (सरस्वती) विज्ञानवाली बुद्धि (इह) इस शिल्पविद्या के ग्रहणरूप व्यवहार में (नः) हमको (तूयम्) वर्धक (यज्ञम्) शिल्पविद्या के प्रकाशरूप यज्ञ को (मनुष्वत्) मनुष्य के तुल्य (चेतयन्ती) जनाती हुई हम को (आ, एतु) सब ओर से प्राप्त होवे, ये पूर्वोक्त (तिस्रः) तीन (देवी) प्रकाशमान (इदम्) इस (बर्हिः) बढ़े हुए (स्योनम्) सुखकारी काम को (स्वपसः) सुन्दर कर्मोंवाले हमको (आ, सदन्तु) अच्छे प्रकार प्राप्त करें ॥३३ ॥
भावार्थभाषाः - इस शिल्प व्यवहार में सुन्दर उपदेश और क्रियाविधि को जताना और विद्या का धारण इष्ट है। यदि इन रीतियों को मनुष्य ग्रहण करें तो बड़ा सुख भोगें ॥३३ ॥
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संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तमेव विषयमाह ॥

अन्वय:

(आ) समन्तात् (नः) अस्मभ्यम् (यज्ञम्) शिल्पविद्याप्रकाशमयम्। (भारती) एतद्विद्याधारिका क्रिया (तूयम्) वर्द्धकम् (एतु) प्राप्नोतु (इडा) सुशिक्षिता मधुरा वाक् (मनुष्वत्) मानववत् (इह) अस्मिन् शिल्पविद्याग्रहणव्यवहारे (चेतयन्ती) प्रज्ञापयन्ती (तिस्रः) (देवी) देदीप्यमानाः (बर्हिः) प्रवृद्धम् (आ) (इदम्) (स्योनम्) सुखकारकम् (सरस्वती) विज्ञानवती प्रज्ञा (स्वपसः) सुष्ठ्वपांसि कर्माणि येषान्तान् (सदन्तु) प्रापयन्तु ॥३३ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे मनुष्याः ! या भारती इडा सरस्वतीह नस्तूयं यज्ञं मनुष्वच्चेतयन्त्यस्मानैतु इमास्तिस्रो देवीरिदं बर्हिः स्योनं स्वपसोऽस्माना सदन्तु ॥३३ ॥
भावार्थभाषाः - अत्र शिल्पव्यवहारे सुष्ठूपदेशक्रियाविधिज्ञापनं विद्याधारणं चेष्यते यदीमाः तिस्रो रीतीर्मनुष्या गृह्णीयुस्तर्हि महत्सुखमश्नुवीरन् ॥३३ ॥
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मराठी - माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - या हस्तक्रिया कौशल्य व्यवहारात (शिल्पविद्या) चांगली सुशिक्षित वाणी, क्रिया निर्मिती व विद्याधारणा या तीन गोष्टी अभिप्रेत आहेत. जर या तिन्ही रीती अंगीकारल्या तर माणसांना सुख भोगता येते.